राजनीति में एक ऐसा खिलाड़ी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने अपनों को भी नहीं बख्शा… एक ऐसा दोस्त, जो गले मिलता है, लेकिन कब खंजर निकाल ले, कोई नहीं जानता।
जिस भारत ने उसके लिए ‘नमस्ते ट्रम्प’ से लेकर ‘हाउडी मोदी’ तक पलकें बिछाईं, उसी भारत की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा हमला करने की तैयारी चुपचाप की जा रही थी।
वो दोस्ती की कसमें, वो गर्मजोशी से मिलना… आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोस्ती का ये सुनहरा दौर, दुश्मनी की कगार पर आ खड़ा हुआ? इसका राज़ आपको हैरान कर देगा।
क्या आप यकीन करेंगे कि इस पूरी कहानी का कनेक्शन भारत के एक सीक्रेट ऑपरेशन से जुड़ा है? एक ऐसा मिशन, जिसमें अमेरिका को क्रेडिट न मिलने से ट्रम्प बुरी तरह चिढ़ गए थे।
दोस्ती के पर्दे के पीछे एक खतरनाक खेल चल रहा था। एक ऐसा खेल, जिसमें भारत को झुकाने की पूरी स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी थी, और दुनिया तमाशा देख रही थी।
और फिर अचानक, दोस्ती के बदले भारत पर ठोक दिया गया 25% का ऐसा टैक्स, जिसने भारतीय बाज़ारों में हड़कंप मचा दिया। ये सिर्फ टैक्स नहीं, बल्कि एक सीधी चुनौती थी।
लेकिन क्यों? अमेरिका ने अचानक ऐसा कदम क्यों उठाया? वजह सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती ताकत और रूस के साथ उसकी दोस्ती थी, जो अमेरिका की आँखों में चुभ रही थी।
ट्रम्प ने न सिर्फ टैक्स लगाया, बल्कि भारत को धमकी दी कि अगर वो रूस से तेल खरीदेगा, तो अमेरिका पाकिस्तान की मदद करेगा! सोचिए, भारत के खिलाफ पाकिस्तान का इस्तेमाल!
इसके पीछे का छिपा हुआ सच था ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में ट्रम्प को क्रेडिट न मिलना। जी हाँ, एक छोटी सी बात ने अमेरिका को इतना भड़का दिया कि उसने भारत से बदला लेने की ठान ली।
और सिर्फ इतना ही नहीं, ट्रम्प ने भारत की अर्थव्यवस्था को ‘मरी हुई’ कहकर उसका मज़ाक भी उड़ाया। ये दोस्ती नहीं, बल्कि एक सोची-समझी बेइज़्ज़ती थी।
ये 25% का टैक्स सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि आपकी जेब पर डाका डालने वाला था। पेट्रोल, डीज़ल से लेकर घर के राशन तक, हर चीज़ की कीमत आसमान छू सकती थी, और आपकी सारी बचत खत्म हो सकती थी।
ब्लूमबर्ग के अनुसार, ट्रम्प के टैरिफ के बाद, भारत ने आधिकारिक तौर पर अमेरिका को सूचित कर दिया है कि वह अब एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने में रुचि नहीं रखता है।
अमेरिका का ये दोहरा चेहरा कोई नया नहीं है। इतिहास गवाह है, उसने जिसे दोस्त बनाया, उसी को बर्बाद भी किया। सद्दाम से लेकर ओसामा तक, अमेरिका की दोस्ती का मतलब हमेशा से धोखा ही रहा है।
वैसे ट्रम्प चाचा का भी जवाब नहीं! एक तरफ ‘हाउडी मोदी’ में आकर भीड़ का मज़ा लेते हैं, और दूसरी तरफ भारत की जेब काटने की तैयारी करते हैं। इसे कहते हैं ‘दोस्ती में धोखेबाज़ी’!
इस टैक्स का सीधा असर भारत के कपड़ा उद्योग, दवा कंपनियों और किसानों पर पड़ना था। लाखों नौकरियां खतरे में थीं और देश की तरक्की की रफ्तार धीमी पड़ सकती थी।
लेकिन ट्रम्प एक बात भूल गए थे। ये 1971 वाला भारत नहीं था, जो किसी के दबाव में आ जाए। ये नया भारत था, और मोदी सरकार ने जो जवाबी चाल चली, उसने अमेरिका को भी सोचने पर मजबूर कर दिया।
भारत ने भी अमेरिका से आने वाले बादाम, सेब और अखरोट जैसे 28 सामानों पर जवाबी टैरिफ ठोक दिया। संदेश साफ था – “अगर तुम एक मारोगे, तो हम दो मारेंगे।”
सोचिए, आपकी गाड़ी की EMI, घर का राशन, बच्चों की फीस… इस एक अमेरिकी फैसले से सब पर असर पड़ सकता था। ये लड़ाई सिर्फ सरहदों पर नहीं, बल्कि हमारे घरों तक आ पहुंची थी।
इसे ‘ट्रेड वॉर’ कहते हैं। जब एक देश दूसरे देश के सामान पर टैक्स लगाता है, तो दूसरा देश भी पलटवार करता है। इससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है, लेकिन आत्मसम्मान की लड़ाई में ये ज़रूरी हो जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस रूस के साथ व्यापार करने पर अमेरिका भारत को धमकी दे रहा था, वो खुद रूस से अरबों डॉलर का तेल और यूरेनियम खरीद रहा था। इसी को कहते हैं दोहरा मापदंड!
इस पूरे खेल के पीछे एक गहरा रहस्य है। क्या अमेरिका भारत को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में देखकर डर गया है? क्या वो नहीं चाहता कि भारत आत्मनिर्भर बने और दुनिया पर राज करे?
लेकिन भारत अब रुकने वाला नहीं है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे मिशन सिर्फ नारे नहीं, बल्कि अमेरिका जैसी ताकतों को जवाब देने का हमारा हथियार हैं। असली ताकत दूसरों पर निर्भर रहने में नहीं, बल्कि खुद के पैरों पर खड़े होने में है।
भारत सरकार ने जवाबी कार्रवाई के साथ-साथ अपने निर्यातकों को टैक्स में छूट और सब्सिडी जैसी मदद दी, ताकि वे इस झटके को सह सकें और नए बाज़ारों की तलाश कर सकें।
ये लड़ाई सिर्फ दो देशों के बीच के व्यापार की नहीं थी, बल्कि ये भारत के उन करोड़ों किसानों, मज़दूरों और उद्यमियों के सपनों की लड़ाई थी, जो दिन-रात मेहनत करके देश को आगे बढ़ा रहे हैं।
जब कोई आपके स्वाभिमान को चुनौती देता है, तो जवाब देना ही पड़ता है। भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि वो एक शांतिप्रिय देश है, लेकिन अपने आत्मसम्मान से समझौता कभी नहीं करेगा।
तो भारत की असली ताकत क्या है? वो है आत्मनिर्भरता। भारत ने अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए यूरोप, ब्रिटेन और आसियान देशों के साथ व्यापारिक समझौते तेज़ कर दिए।
आज भारत सिर्फ एक बाज़ार नहीं, बल्कि दुनिया की फैक्ट्री बन रहा है। हमारे स्टार्टअप्स, हमारी टेक्नोलॉजी और हमारा टैलेंट आज दुनिया में डंका बजा रहा है। ट्रम्प की धमकियां भारत को डरा नहीं सकतीं, बल्कि हमें और मज़बूत बनाती हैं।
ये लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन एक बात साफ है – भारत का भविष्य किसी दूसरे देश के फैसलों पर नहीं, बल्कि हम 140 करोड़ भारतीयों के हौसले और मेहनत पर निर्भर करता है। जब हम ‘मेड इन इंडिया’ को अपनी पहली पसंद बनाएंगे, तो दुनिया की कोई ताकत हमें झुका नहीं पाएगी।
आपकी इस पर क्या राय है? क्या भारत को अमेरिका को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए था? कमेंट्स में ज़रूर बताएं। जय हिन्द!