कानपुर आईआईटी में एक दर्दनाक घटना सामने आई है। बीटेक फाइनल ईयर के छात्र धीरज सैनी ने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस के अनुसार, धीरज का शव दो से तीन दिन तक कमरे में लटका रहा, जिसके बाद बदबू आने पर घटना का पता चला। वह हरियाणा के महेंद्रगढ़ का रहने वाला था और केमिकल इंजीनियरिंग का छात्र था। वह हाईजंप का खिलाड़ी भी था। दोस्तों के अनुसार, वह कुछ दिनों से चुपचाप रहता था। पुलिस और आईआईटी प्रशासन आत्महत्या के कारण की जांच कर रहे हैं। यह घटना सुरक्षा और निगरानी को लेकर सवाल खड़े करती है क्योंकि छात्र का शव तीन दिनों तक कमरे में लटका रहा और किसी को खबर नहीं हुई।
Highlights
ज़रूर, यहाँ लेख के मुख्य अंश बुलेट बिंदुओं में दिए गए हैं:
- आईआईटी कानपुर में आत्महत्या: आईआईटी कानपुर में बीटेक के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली।
- छात्र का नाम: मृतक छात्र का नाम धीरज सैनी था, जो हरियाणा के महेंद्रगढ़ का रहने वाला था।
- शव की खोज: छात्र का शव उसके हॉस्टल के कमरे में तीन दिनों तक लटका रहा, जिसके बाद कमरे से बदबू आने पर साथियों को घटना की जानकारी हुई।
- विभाग और वर्ष: धीरज सैनी केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में फाइनल ईयर का छात्र था।
- खेल: वह हाईजंप का खिलाड़ी भी था।
- पुलिस जांच: पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और आत्महत्या के कारण की जांच कर रही है।
- परिजनों को सूचना: धीरज के पिता को घटना की जानकारी दे दी गई है।
- निगरानी पर सवाल: घटना के बाद हॉस्टल में सुरक्षा और निगरानी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि तीन दिनों तक शव लटका रहा और किसी को पता नहीं चला।
- छात्र का व्यवहार: छात्रों ने बताया कि धीरज कुछ दिनों से चुपचाप रहता था।
IIT कानपुर: एक और जान, एक और सवाल!
राहुल पराशर द्वारा, नवभारत टाइम्स.कॉम • 1 अक्टूबर 2025, 7:36 अपराह्न
एक गहरा दुःख, एक सवाल जो बार-बार उठता है: क्या हम अपने बच्चों को खो रहे हैं?
उत्तर प्रदेश के कानपुर से एक ऐसी खबर आई है जिसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है। आईआईटी कानपुर, जो देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है, वहां एक बीटेक के छात्र ने आत्महत्या कर ली। धीरज सैनी, जो हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले थे, और अपने फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे थे, उन्होंने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
यह सिर्फ एक खबर नहीं है, यह एक चीख है!

वो तीन दिन…
पुलिस के अनुसार, धीरज का शव कमरे में दो से तीन दिनों तक लटका रहा, और किसी को पता भी नहीं चला। कल्पना कीजिए, एक युवा, होनहार छात्र, अपने कमरे में अकेला, और किसी को भी उसकी मदद करने के लिए नहीं है।
जब कमरे से तेज बदबू आने लगी, तब साथियों को घटना की जानकारी हुई। सूचना पर पहुंची आईआईटी प्रशासन और पुलिस टीम ने दरवाजा खोला और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा।
एक अनदेखी चीख…
कल्याणपुर इंस्पेक्टर अजय मिश्रा ने बताया कि शव तीन दिन पुराना लग रहा है। कमरे के बाहर अपशिष्ट पदार्थ और बदबू फैलने पर साथियों ने प्रशासन को सूचना दी। पुलिस और फोरेंसिक टीम ने मौके पर जांच की और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
एक परिवार टूट गया…
धीरज के पिता, सतीश कुमार, निवासी बुधौली रोड, शकरकुली, महेंद्रगढ़ (हरियाणा), को इस घटना की सूचना मिलते ही गहरा सदमा लगा। एक पिता के लिए अपने बच्चे को इस तरह खोना सबसे बड़ा दुःख होता है।
कौन जिम्मेदार है?
छात्रों ने बताया कि धीरज पिछले कुछ दिनों से चुपचाप रहता था, लेकिन किसी ने अंदेशा नहीं लगाया था कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है। आईआईटी प्रशासन और पुलिस अब आत्महत्या की वजह जानने की कोशिश कर रही है।
लेकिन क्या यह काफी है? क्या सिर्फ वजह जानना ही काफी है? क्या हम इस बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि एक छात्र, इतने प्रतिष्ठित संस्थान में, इतना अकेला महसूस कर रहा था कि उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया?
सबसे बड़ा सवाल: सुरक्षा और निगरानी कहां थी?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि तीन दिनों तक हॉस्टल में छात्र का शव लटके रहने के बाद भी किसी को खबर नहीं हुई। इस पर सुरक्षा और निगरानी को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है।
क्या हमारे संस्थानों में छात्रों की सुरक्षा और भलाई के लिए पर्याप्त उपाय हैं? क्या हम उन्हें वह सहायता और समर्थन प्रदान कर रहे हैं जिसकी उन्हें ज़रूरत है?
आंकड़ों की भाषा में त्रासदी:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, आत्महत्या वैश्विक स्तर पर मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, खासकर युवा वयस्कों में।
- भारत में, 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं में आत्महत्या मृत्यु का प्रमुख कारण है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, छात्रों में आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है।
ये आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं हैं, ये जीवन हैं!
क्या हम कुछ कर सकते हैं? हाँ!
- जागरूकता बढ़ाएं: आत्महत्या के बारे में खुलकर बात करें और इसके संकेतों और लक्षणों के बारे में जागरूकता फैलाएं।
- सहायता प्रदान करें: यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो संघर्ष कर रहा है, तो उसे सहायता प्रदान करें और उसे पेशेवर मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
- अपने संस्थानों में बदलाव लाएं: अपने संस्थानों में छात्रों की भलाई के लिए नीतियां और कार्यक्रम विकसित करें।
यह समय है कि हम अपनी आंखें खोलें और इस समस्या का समाधान करें।
अगर आप या आपका कोई जानने वाला मुश्किल दौर से गुजर रहा है, तो कृपया किसी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करें या आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन पर कॉल करें।
- आसरा: 022-27546669
- वंदना: 040-24640050
यह एक शुरुआत है, हमें मिलकर काम करना होगा!
क्या आपके मन में भी उठ रहे हैं ये सवाल?
- क्या हमारे शिक्षा संस्थानों में छात्रों पर अत्यधिक दबाव है?
- क्या हम छात्रों को भावनात्मक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त सहायता प्रदान कर रहे हैं?
- क्या हम छात्रों को अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात करने के लिए एक सुरक्षित माहौल बना रहे हैं?
अगर आपके मन में भी ये सवाल उठ रहे हैं, तो कृपया इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त करें। हम सभी मिलकर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
लेखक के बारे में: राहुल पराशर

राहुल पराशर, नवभारत टाइम्स ऑनलाइन में सीनियर जर्नलिस्ट हैं। वे राजनीति, करेंट अफेयर्स, डेवलपमेंट, ब्यूरोक्रेसी, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्राउंड रिपोर्टिंग का 20 साल का अनुभव रखते हैं। करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने प्रशासन, सिविक इश्यू को कवर किया। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पत्रकारिता के गुर भी सीखे। बिहार विधानसभा चुनाव 2005 से लेकर लोकसभा चुनाव 2024 तक 10 चुनावों में रिपोर्टिंग की है। इसमें बिहार विधानसभा चुनाव फरवरी 2005, अक्टूबर-नवंबर 2005, लोकसभा चुनाव 2009, बिहार विधानसभा चुनाव 2010, लोकसभा चुनाव 2014, बिहार विधानसभा चुनाव 2015, लोकसभा चुनाव 2019, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ग्राउंड रिपोर्टिंग शामिल है। इसके अलावा यूपी चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 का का विश्लेण किया। इस दौरान बिहार, झारखंड और यूपी के निकाय चुनावों को कवर किया। पिछले करीब चार साल से NBT (Digital) में यूपी डेस्क काम कर रहे हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय विद्या भवन, मुंबई से जुड़े पीकेआईएमएस से पत्रकारिता की पढ़ाई की है।
एक अपील:
यह खबर हमें सोचने पर मजबूर करती है। हमें अपने बच्चों, अपने छात्रों, और अपने आसपास के लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है। हमें उन्हें यह महसूस कराने की जरूरत है कि वे अकेले नहीं हैं, और हम उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।
आज ही बदलाव लाएं। किसी की जिंदगी बचाएं।
यह सिर्फ एक लेख नहीं है, यह एक आह्वान है!